२०१४ में भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने नयी शिक्षा नीति लाने का वादा किया था। चूंकि पिछली शिक्षा नीति तीन दशक पहले आयी थी इसलिए इस घोषणा से पूरे देश को काफी उम्मीदें थी।
इसके बाद, २०१५ में टी एस सुभ्रमण्यम के नेतृत्व में इस कार्य के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया। उस समय मंत्रालय और कमिटी के बीच में मतभेद के कारण कोई भी नतीजा नहीं निकल पाया। २०१६ में समिति को पुनर्जागृत किया गया, इस बार बागडोर दी गयी अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन को। २०१९ के चुनाव आने तक इस नई शिक्षा नीति पर कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाया। नयी सरकार बनते है समिति की रिपोर्ट मंत्रालय भी पहुँच गयी। अब ये नई शिक्षा नीति १७वीं लोकसभा के हाथों में है। नयी शिक्षा नीति के प्रस्ताव के आते ही सारा विवाद भाषा पर आधारित हो गया । इसके चलते प्रस्ताविक नीति में जो अन्य महत्वपूर्ण तथ्य थे उनपर प्रकाश काम ही पड़ पाया। यह उल्लेखनीय है कि नयी शिक्षा नीति में शिक्षक सुधार, पद्यति विकास और भाषाओं के शिक्षण को लेकर कई नयी बिंदु हैं, लेकिन सम्पूर्ण भारत के शिक्षकों तक ये सब कैसे सुचारु रूप से लागू हो पाएगी इसकी कार्य योजना पर कोई चर्चा नहीं हुई है। साथ ही उभरती टेक्नोलॉजी और विज्ञान को शिक्षण में कैसे लाया जाए इसपर भी बिल में अधिक धयान कि आवश्यकता प्रतीत होती है।
३१.५ करोड़ छात्र और लगभग एक करोड़ शिक्षकों के भविष्य का निर्धारण इस नीति के तहत होना बाकि है। सर्वप्रथम, शिक्षकों के लिए गुणवत्ता सुधार के नाम पर लगभग न के बराबर सुविधाएं उपलब्ध रहीं हैं । सरकारी स्कूल, जो कि संख्या में तीन-चौथाई हैं, उनमें शिक्षकों की नियुक्ति स्थायी रूप से होती है, जो की रिटायरमेंट तक कायम रहती है । इन शिक्षकों पर हमने भविष्य के दशकों के नागरिकों को बनाने की जिम्मेदारी तो दे दी मगर इन्हे वर्त्तमान के साथ चलने की ट्रेनिंग पर निवेश और समय, दोनों पहलुओं पर हमारी प्राथमिकता अब तक कम रही है।
आज शिक्षा में सबसे बड़ा निवेश शिक्षकों को भविष्य की तकनीक की जानकारी देना और उसमें माहिर बनाना है। नयी शिक्षा नीति में पहली बार हर वर्ष ५० घंटे की ट्रेनिंग की बात पर ज़ोर दिया। ऐसी ट्रेनिंग को शिक्षकों तक ले जाने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जा सकता है और भारत की बढ़ती आई.टी. इंडस्ट्री के साथ मिलकर इस कार्य को पूरा किया जाना चाहिए । इस ट्रेनिंग व्यवस्था को सुचारू और सुदृढ़ बनाने के लिए जिला स्तर पर शिक्षकों के प्रोत्साहन और सम्मान कि व्यवस्था की जा सकती है । शिक्षकों की ट्रेनिंग आधुनिक विषय जैसे नैनोटेक्नोलाजी, ऑटोमेशन, मशीन लर्निंग, ऑग्मेंटेड रियलिटी और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विषयों में करी जाने की आवश्यकता है । इन नए आयामों को हम, बी.एड. से लेकर मध्य-करियर ट्रेनिंग तक, कैसे लेकर जायेंगे इस सन्दर्भ में नया बिल ज्यादा कुछ नहीं कहता है.
कई अन्य देश इस सन्दर्भ में आगे बढ़ चुके हैं। उदाहरण के लिए, स्कॉटलैंड में “दूसरे ग्रहों में जीवन” की ट्रेनिंग, शिक्षकों और छात्रों दोनों को पाठ्यक्रम के तहत दी जा रही है । तर्क यह है कि इस बात की प्रबल संभावना है की अगले दो दशकों में हम मंगल तथा अन्य ग्रहों पर मानव सभ्यता को ले जायेंगे और जो बच्चे आज स्कूलों में है, वही भविष्य के “मंगल यात्री” बनेंगे। ऐसी आशावादी और भविष्य कि ओर अग्रसर शैक्षिक सोच यदि ५० लाख कि आबादी का स्कॉटलैंड रख सकता है, तो सवा अरब के भारत को पीछे नहीं रहना चाहिए।
इसके अलावा हमें शिक्षा के क्षेत्र में अल्पावधि सेवा के तहत शिक्षकों को लाना होगा। भारत में हर वर्ष १५ लाख नए इंजीनियर बनते हैं, जो नौकरी की तलाश में रहते हैं । इसके साथ, ऐसे हज़ारो विशेषज्ञ हैं जो सीमित समय के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने के लिए तत्पर हैं । क्या इस विशाल अप्रयुक्त प्रतिभा का प्रयोग हम शैक्षिक बदलाव के लिए कर सकते हैं? इसके लिए आवश्यक है कि हम नई शिक्षा नीति में ४ साल तक की अल्पावधि के लिए शिक्षक बनने के अवसर खोलें जिसमे उद्योग से एक्सपर्ट और तकनीकी शिक्षा प्राप्त ग्रेजुएट अपना योगदान दे सके। ऐसी व्यवस्था को सफल बनाने के लिए हर स्कूल में लगभग एक तिहाई शिक्षक अल्पावधि व्यवस्था से आने चाहिए, जिससे कि आधुनिक ज्ञान और उद्योग स्तर कि टेक्नोलॉजी क्लासरूम तक पहुंचे।
तीसरा आयाम यह है कि शिक्षा व्यवस्था की सम्पूर्ण बागडोर स्वयं शिक्षकों के हाथ में दी जाए । वर्तमान में, एक शिक्षक, दो- तीन दशक के सेवाओं के पश्चात भी अधिकतम हेड मास्टर या प्रिंसिपल बनने का ही लक्ष्य रख सकता है। नयी नीति में भी वरिष्ठ शिक्षकों को जिले स्तर तक कुछ पद देने की बात कही गयी है. परन्तु शायद हमें इससे कहीं आगे जाने की आवश्यकता है. इस पद पर भी वह अपने से बीस साल कम अनुभवी व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे शासन और नौकरशाही व्यवस्था के अधीन रहेगा और उसे ऐसे लोगों को अपने कार्य का वृतांत देना होगा जिनका स्कूल और क्लासरूम चलने का अनुभव लगभग नगण्य है। शिक्षकों का पाठ्यक्रम निर्धारित करने में योगदान भी सीमित होता है 8। कोई भी संस्था प्रगति तब करती है जब उसका नेतृत्व उस क्षेत्र के विशेषज्ञ करते हैं। इसका उदाहरण हम इसरो, डीआरडीओ, दिल्ली मेट्रो और अनेक सफल संस्थाओं में देख सकते हैं। डॉ. कलाम और मैंने, अपनी पुस्तक एडवांटेज इंडिया(२०१५) में इस पहलू पर एक विचार रखा था। हमने, भारतीय शैक्षिक सेवाओं (आई टी एस), जो कि प्रशासनिक सेवाओं के स्तर की होगीं का सुझाव रखा था। इन सेवाओं में शिक्षा के क्षेत्र में कैरियर बनानेवाले प्रतिभाशाली युवा तथा उच्च प्रदर्शी शिक्षकों को सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली की रचना, नियंत्रण और प्रशासन का उत्तरदायित्व दिया जा सकता है। शिक्षा क्षेत्र के बजट, पाठ्यक्रम, स्कूल निर्माण तथा सभी उपकरण की व्यवस्था इन्हीं प्रतिभाशाली और दीर्घकालीन शिक्षकों के हाथ में होनी चाहिए।
आज के समय में, हमें पाठ्यक्रम को हर दो वर्ष संशोधित करने की नीति बनानी होगी । हर महीने मैं भारत के विभिन्न क्षेत्रों से हज़ारों छात्रों से मिलता हूँ और वह मुझे अक्सर कहते हैं कि, विशेषकर गणित और विज्ञान की पढ़ाई “बोरिंग” है । उन्हें यह समझ में नहीं आता कि कठिन फार्मूला को याद रखने कि क्या जरुरत है। क्या शिक्षा का पैमाना याददाश्त है या फिर जटिल समस्याओं का समाधान निकालना ? इस सवाल का जवाब नई शिक्षा नीति को गहन रूप से सोचना होगा। क्यों ना हम खुली किताब परीक्षा के तहत छात्रों की परख उनकी समझदारी और अन्वेषण के आधार पर करें। अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये ऐसे प्रश्न पत्रों की जांच करने में शिक्षकों की सहायता करी जा सकती है जो पहले संभव नहीं था। शिक्षा में एक छात्र को आनंद का अनुभव होना चाहिए, भय का नहीं ।
यूरोप के कई देशों, विशेषकर जर्मनी, से हम वोकेशनल एजुकेशन को स्कूलों में कुशल रूप से ले जाने के बारे में सीख सकते हैं। हमे याद रखना है की स्कूलों को सिर्फ इंजीनियर और डॉक्टर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर के बढ़ई,प्लम्बर,इलेक्ट्रीशियन और अनेक अन्य प्रकार के नागरिक देश और दुनिया के लिए बनाने हैं। हर एक स्कूल के पास छात्रों के कैरियर प्लानिंग की सुविधा के केंद्र होना भी आवश्यक है, जिससे कि प्रतिभा, अवसर और रूचि के हिसाब से छोटी उम्र से ही छात्र और उनके अभिभावक भविष्य के लक्ष्य निर्धारित कर सकें । नई शिक्षा नीति भारत के भविष्य की कर्णधार होगी । यह आवशयक है कि हम भारत के सभी १५ लाख स्कूलों में तीन लैब मुहैया कराएं – कंप्यूटर, कैरियर और कौशल । शिक्षा और स्कूल एक समृद्ध भारत का प्रवेश द्वार है और युवा शक्ति को राष्ट्र प्रगति में रूपांतरित करने का मार्ग है, इसलिए इस क्षेत्र पर हमारा अधिकतम ध्यान और प्रयास दोनों आवश्यक हैं । नयी शिक्षा नीति की पहल मोदी १.० ने करी थी और अब मोदी २.० सरकार को इस नई शिक्षा नीति पर तत्काल ध्यान देना होगा ।
As published in Dainik Jagran (National Edition) on 17 June 2019.
Comments