२०१४ का साल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष था जब भारत में इस समुदाय की संख्या का सरकारी आंकड़ा उजागर हुआ – ४.९ लाख । हालांकि इस मुद्दे के विशेषज्ञों का मानना है की असल में यह संख्या ३० लाख से परे है । २०१४ में ही भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने नालसा द्वारा दायर मुक़दमे में फैसला देते हुए ट्रांसजेंडर ,हिजरा , किन्नर, कोठिस ,अरवणीस, जोगापपस , शिव –शक्ति ,इत्यादि समाज को एक नई पहचान देते हुए उन्हें तीसरे लिंग की संज्ञा दी. साथ ही सर्वोच्च न्यायलय ने अपने इस फैसले में तीसरे लिंग समुदाय के लोगों को नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण तथा उनसे होने वाले भेदभाव पर अंकुश लगाने की ज़िम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकार पर डाली । सर्वोच्च न्यायलय ने ये भी कहा कि लिंग निर्धारण का अधिकार व्यक्तिगत चुनाव है।
नालसा (NALSA) फैसले के कार्यान्वन के लिए २०१६ में केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर (व्यक्ति अधिकारों के संरक्षण) विधेयक प्रस्तावित किया । २७ संशोधनों के उपरान्त २०१८ के अंत में लोक सभा में यह विधेयक पारित हो गया । हालांकि राज्य सभा की हरी झंडी अभी भी इस बिल को मिलनी बाकी है ।ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों और अनेक विशेषज्ञों का मानना है की २०१८ का संशोधित विधेयक और २०१४ के सर्वोच्च न्यायलय के NALSA फैसले में मूलभूत अंतर हैं। दो विषयों पर सबसे अधिक विरोध हुआ। पहला २०१८ विधेयक में किसी व्यक्ति को तृतीय लिंग का दर्ज़ा देने की प्रक्रिया सरकार द्वारा गठित समिति के हाथ में देने की बात कही गयी है । लगभग ७ सदस्यों की इस समिति को ज़िले स्तर पर गठित किया जाना होगा और इसमें जिला मजिस्ट्रेट / कलेक्टर के साथ जिला समाज कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता और ट्रांसजेंडर समुदाय के दो प्रतिनिधियों हिस्सा लेंगे । वैसे ही सामाजिक तिरस्कार झेल रहे तृतीय लिंग समुदाय का मानना है की ऐसे कठिन और लम्बी सरकारी प्रक्रिया से अधिकतर तृतीय लिंग आवेदक कतराएंगे और यह किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार के विरूद्ध है । अब सवाल यह है की क्या एक व्यक्ति का लिंग अभिव्यक्ति की है या नहीं?
दूसरा मुद्दा जिस पर विरोध प्रकट हुआ वो था तृतीय लिंग को दी जानेवाली सुविधाओं का विषय । २०१६ में विकलांग व्यक्तियों के अधिकार के तहत दिव्यांग व्यक्ति को शिक्षा और नौकरी में ५ % और ३ % क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की गई है । तृतीय लिंग समुदाय ऐसे ही २% आरक्षण की मांग कर रहा है जबकि विधेयक में इसका कोई प्रावधान नहीं है ।इस बात में कोई दो राय नहीं है की यदि तृतीय लिंग समुदाय को बेहतर आर्थिक और शैक्षिक विकल्प दिए जाए तो वो मौजूदा कुरीतियों से अपने आप को मुक्त कर सकते हैं । मगर दूसरी तरफ, क्या कोई ऐसा प्रावधान उचित होगा, जिसमे की सरकार किसी भी समुदाय के लिए कोई आरक्षण या अन्य सुविधाएं तो दे मगर लाभार्थियों के सही या गलत होने का चुनाव खुद आवेदनकरता कर सकता है? और यदि ऐसा किया गया तो किस प्रकार से हम झूठे तृतीय लिंग घोषणा से इन लाभों को गलत हाथो में जाने से कैसे रोक पाएंगे ? इस विषयों का जवाब न तो २०१४ का NALSA फैसला और न ही सरकार का २०१८ विधेयक दे पाया है ।
शायद ये भी समझना आवश्यक है की तृतीय लिंग समाज की व्यवस्था कैसी होती है। प्रायः किशोर अवस्था की शुरुआत से लेकर २० से २२ साल के बीच तृतीय लिंग के युवा, अधिकतर मामलों में समाज द्वारा अपमानित होकर अपना घर छोड़ देते हैं । इसके पश्चात वो तृतीय लिंग की बस्तियों में जाकर किसी न किसी ज्येष्ठ तृतीय लिंग , यानी की “गुरु” के “चेले” बन जाते हैं । “गुरु-चेले” की ये परंपरा तृतीय लिंग के समुदाय में काफी पुरानी है । गुरु युवा चेले को संरक्षण और रोज़गार देती है और चेले गुरु के काम में हाथ बटाते हैं और गुरु के रख-रखाव के लिए आमदनी का अंश देते हैं । सदियों से तृतीय लिंग के एक बड़े भाग ने शादी-ब्याह और जन्म पर ”बधाई देना ” और कई शहरों में भीख मांगने को ही अपनी आय का मुख्य स्रोत बना रखा है । बदलते समय में खुद तीसरे लिंग के समुदाय ने इन प्रथाओं को लेकर आतंरिक द्वंद्व है। एक ओर वृद्ध होते अनेक “गुरुओं“ का मत है की बधाई देना और भीख माँगना उनका अधिकार है वही दूसरी तरफ तृतीय लिंग के अनेक युवा इन प्रथाओं को अपने आत्मसम्मान के विरुद्ध मानते हैं । इसी सोच को रखने वाले कुछ लोग राजनीति, सरकारी, नौकरी,न्याय पालिका, फैशन उद्योग और अन्य आधुनिक रोज़गार और शिक्षा में हिस्सा ले रहे है । किन्तु तीसरे लिंग का एक बड़ा भाग आज भी परंपरा के नाम पर नए रोज़गारो से दूर हैं । यदि हमे इस समुदाय को वाकई आधुनिक गति पर लाना है तो इस गुरु -चेला व्यवस्था में ही जाकर हमे नयी शिक्षा, तकनीकी ज्ञान , कंप्यूटर शिक्षा, स्वास्थ्य और आय का स्रोत बनाना होगा।
एक तृतीय लिंग बच्चे को छोटी उम्र में ही ये ज्ञात होना शुरू हो जाता है की वह अन्य बच्चों से अलग है । भारत के किसी भी कोने में ऐसे बच्चे या किशोर को स्कूल, मोहल्ले और अपने परिवार तक में तिरस्कार, उपहास और क्रोध तीनों को झेलना होता है । हमारी सिनेमा और धारावाहिकों में भी तीसरे लिंग के लोगो का प्रदर्शन उपहास के लिए ही होता है । ऐसे बहिष्कार से किसी भी व्यक्ति के मनोबल को ठेस पहुँचती है । इसलिए यह आवश्यक है की हम समाज में तीसरी लिंग को लेकर एक बेहतर सोच बनाये, ताकि स्कूल में बच्चे और टीचर से लेकर और घर में भाई-बहन और माँ-बाप तीसरे लिंग के बारे में जानकार रहे और उन्हें वो सम्मान दे जो किसी भी नागरिक का अधिकार है। तीसरे लिंग के लोगो से चर्चा के बाद मुझे ऐसी घटनाओं का ज्ञात हुआ जहाँ पर पूरे गांव ने एक युवा को तीसरे लिंग के होने के कारण ज़िंदा जलाने की कोशिश करी या मिल कर मारा या फिर घर, स्कूल और गाँव से निकाल दिया । इसलिए तीसरे लिंग के बारे में ज्ञान और संवेदना सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि गाँव-गाँव तक पहुंचाने की आवश्यकता है। इसलिए स्कूल के पाठ्यक्रम में इसे सम्मिलित करना होगा उसी प्रकार से जिस प्रकार से हम पुरुष और स्त्री लिंग के बारे में पढ़ाते हैं।
आधुनिक विज्ञान ने तीसरे लिंग के व्यक्तियों को एक नया आयाम दिया “लिंग परिवर्तन सर्जरी “ । अनेक तृतीय लिंग व्यक्ति इस सर्जरी को अपनी परम आशा की किरण के रूप में देखते हैं जिससे वह शारीरिक रूप से उस लिंग जैसे हो जाएंगे जिससे वह मानसिक रूप से मेल खाते हैं. ऐसी एक सर्जरी की कीमत कम से कम ४ लाख रूपए है। इस नवीन सन्दर्भ में मुझे तृतीय लिंग व्यक्ति ने कहा की वह सामान्य रोज़गार करके अपना जीवन यापन तो कर सकती हैं, परन्तु लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए पैसे जुटाने हेतु उन्हें देह व्यापार और भीख मांगने का काम भी करना पड़ता है. ऐसा करते हुए HIV AIDS और हेपेटाइटिस जैसी विषम बीमारियाँ लगने का खतरा बहुत ज़्यादा होता है । यही कारण है की तृतीय लिंग समुदाय में HIV AIDS होने की संभावना ३.1 % है जो राष्ट्रीय दर से १० गुना ज़्यादा है। इस लिंग परिवर्तन सर्जरी के विषय को गहन रूप से अध्ययन करना और विधेयक में इसके बारे में भी उत्तर देना आवश्यक है।
२०१८ का विधेयक को पारित करने वाली १६वी लोकसभा अब समाप्ति पर है। तृतीय लिंग की संख्या कोई बहुत विशेष चुनावी प्रभाव नहीं रखती और इसलिए २०१९ लोकसभा में किसी भी पार्टी ने इसके बारे में कोई विशेष चर्चा नहीं करी। मगर किसी भी समाज की उन्नत्ति इससे निर्धारित होती है की वह संख्या में छोटे किन्तु मुद्दों में महत्वपूर्ण समुदायों का ध्यान कैसे रखती है ।तीसरे लिंग का मुद्दा एक ऐसा ही विषय है ।
As published in Amar Ujala (National Edition) on 19 May 2019.
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