As published in Dainik Jagran (National Edition) on June 05, 2020
इस बात में कोई दो राय नहीं है की कोरोना वायरस की वजह से विश्व की अर्थव्यवस्था में 2020 भारी मंदी आने वाली है। आर्थिक मंदियाँ पहले भी आई हैं लेकिन, शायद इतिहास में ऐसा पहली बार होगा मंदी का कारण अर्थव्यवस्था या व्यापार नहीं बल्कि मानव की तेजी से गिरती हुई उत्पादकता होगी। अभी तक के अनुमान कह रहे हैं कि कोरोना वायरस से विश्व की अर्थव्यवस्था को 4 ट्रिलियन डॉलर यानी कि तीन लाख अरब रुपए का भुगतान होगा जो कि विश्व जीडीपी का पांच फ़ीसदी है।
यह भी सच है हम कोरोना वायरस के इलाज की खोज में लगे है, चाहे वह कोई दवा हो या सीधे वैक्सीन। लेकिन इस काल में यह वायरस हमारे जीवन शैली और काम करने के तरीके को हमेशा के लिए बदल देगा। दुनिया भर में अर्थव्यवस्था को वर्चुअल तरीके से चलाना और सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए फैक्ट्री और व्यवसाय को चालू रखने पर काम हो रहा है।
ऐसे काल में भारत के पास अनेक ऐसे अवसर हैं जिससे हम एक बेहतर और टिकाऊ अर्थव्यवस्था बनाएं जो भविष्य में हमें विश्व के विकसित देशों के स्तर पर ले जाए।
भारत हर वर्ष लगभग दस लाख करोड रुपए का कच्चा तेल और गैस का आयात करता है। यह अनुमान है कि गिरते भाव और लॉक डाउन में कम मांग के चलते, इस आयात ने लगभग एक तिहाई की कटौती हो सकती है - यानी कि २०२० में भारत के तेल के बिल में 3.५ लाख करोड़ रुपए का कम खर्च होगा । तेल की कम खपत से प्रदूषण में भी कमी होगी। भारत में हर वर्ष बारह लाख लोगों की जान हवा के प्रदूषण से जाती है। ग्रीन पीस के अनुसार, इस प्रदूषण से हर वर्ष लगभग 11 लाख करोड़ का नुकसान होता है। उसके साथ डेढ़ लाख लोगों की जान सड़क पर होने वाली दुर्घटना से जाती है। वर्क-फ्रॉम-होम के काल में, इन सब आंकड़ों में कमी आयेगी।
अर्थव्यवस्था के इस कठिन काल में हमारे पास एक अवसर है कि हम विदेशी तेल पर अपनी निर्भरता और प्रदूषण से होने वाले नुकसान से सदा के लिए मुक्ति प्राप्त करें।
कोरोना वायरस से विश्व में नए प्रकार के उद्यम लगाने का अवसर आया है। जब तक यह वायरस हमारे आसपास रहेगा तब तक स्कूल, कॉलेज और ऑफिस, यह सब ऑनलाइन माध्यम पर निर्भर रहेंगे। ऐसे माध्यम बनाना ही एक बहुत बड़ा उद्यम है। ज़ूम नाम की एप्प का उदाहरण ले लीजिए। कोरोना वायरस काल में तेजी से बढ़ती इस ऐप का वैल्यूएशन आज 315, 000 करोड़ों रुपए है। यानी कि लोगों को वीडियो से कनेक्ट करने वाला यह प्रोग्राम की शेयर मार्केट में वैल्यू, भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट एयरलाइंस, इंडिगो से 9 गुना अधिक है।
ज़ूम एक अमेरिकी कंपनी है जिसे एक चीनी मूल के नागरिक ने २०११ में शुरू किया था।
यहीं पर हमारा आर्थिक विवेक काम आना चाहिए। कच्चे तेल के आयात बिल से आने वाली बचत को हमें ऐसे नव उद्यमियों में निवेश करना चाहिए जो कोरोना वायरस काल और उसके बाद विश्व में अपना परचम लहरा सके। यह उद्यमी ऑनलाइन ऑफिस सेवा, स्वच्छ ऊर्जा और नए प्रकार के ईंधन बनाने के हो सकते हैं।
पिछले दो दशकों से, चीन में अपने सस्ते श्रमिक और कई महत्वपूर्ण निवेश के चलते, अपने आप को दुनिया की फैक्ट्री बना लिया है। मगर कोरोना वायरस में चीन की भूमिका को लेकर पूरे विश्व मैं उसे संदेह की नजर से देखा जा रहा है। आज वक्त है की भारत विश्व में चीन के विकल्प के रूप में उभर कर सामने आए। आगामी विश्व में व्यापार सिर्फ सस्ते में सामान बनाने वाले को नहीं, बल्कि निष्ठा और बुरे समय में काम आने वाले को मायने देगा। भारत की संस्कृति उसके व्यापार को प्रतिष्ठा और लाभ देगी। हमें इन परिस्थितियों के हिसाब से अपनी अर्थव्यवस्था को परिवर्तित करना होगा और हम ऐसा करके 1990 के दशक में चीन से पिछड़ी हुई रेस में २०२० में आगे जा सकते हैं।
एक और आयाम पर हमें ध्यान देना है - ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक बराबरी। 1990 के दशक से भारत एक ऐसा देश बनता आ रहा है जहां पर पांच-छह शहरों पर सारी अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। सेवा क्षेत्र को आधी अर्थव्यवस्था बनाने के बाद, आज हमें यह ज्ञात हो रहा है की कृषि की भूमिका कितनी अहम है। हमने ना तो अर्थव्यवस्था के विकास को कृषि और उद्योग में बांटा और ना ही इस विकास को हम छोटे शहरों और गांवों तक ले जाए पाए। इसी का नतीजा है कि आज इतने सारे माइग्रेंट वर्कर्स देश के शहरों में फंसे हुए हैं। आज हमारे पास अवसर है इस आर्थिक विषमता को बदल देने का।
कोरोना वायरस से अर्थव्यवस्था को उभारने के लिए जो प्रयास हो रहे हैं उन्हें गांवों और छोटे शहरों में शुरू करने की आवश्यकता है। बड़े शहरों में जो कंपनियां कम होंगी उन्हें छोटे शहरों में पूरा खोलने का प्रयास किया जाना चाहिए। भारत के छह लाख गांवों को गांधी जी के स्वावलंबी और डॉक्टर अब्दुल कलाम जी के ग्राम पूरा मॉडल (यानी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं उपलब्ध कराना) से होना चाहिए। अब गांव से किसी को गरीबी के कारण शहरों की तरह ना भागना पड़े, ऐसा भारत हमें बनाना है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में एक नई बात कही है - जान भी और जहान भी। यह बात सरकार के अर्थव्यवस्था के प्रति ध्यान को उजागर करती है। वायरस से लड़ना जरूरी है इसमें कोई दो राय नहीं, मगर अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखना अभी एक बेहद जरूरी विषय है नहीं तो तीन दशक का विकास हम एक साल में खो सकते हैं। और छुपा सच तो यह है कि भारत के पास एक सुनहरा अवसर है दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपना वह स्थान लेने का जो 400 साल पहले हमारे पास था। एक वर्ष में, कोरोना वायरस पर जब हमारी जीत हो, तब हम वाकई वह खोई सुनहरी चिड़िया बन सकते हैं।
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