As published in Dainik Jagran (National Edition) 05-09-2020
डॉ. कलाम अपने भाषणों में युवाओं को केंद्र में रखते थे और एक सवाल के साथ उसका समापन करते थे, 'आप किस लिए याद रखा जाना पसंद करेंगे?' यह ऐसा असाधारण सवाल होता था जिसका जवाब ढूंढते-ढूंढते युवा सपनों से भर उठते थे |
2009 में जब मैंने उनके साथ काम करना शुरू किया, तो मैंने महसूस किया की स्कूलों और कॉलेजों में उनके भाषणों का यह आम विषय था | वे कहते, ' आज सोने से पहले, एक कागज़ या लैपटॉप उठाओ | मैंने जो सवाल पूछा है, आप उसका जवाब लिखो | अगर आपका जवाब अच्छा रहा , तो मैं आपको एक ऑटोग्राफ भेजूंगा !'
जिन-जिन छात्रों से वो मिले थे, उन्होंने कम से कम एक बार इस सवाल का सामना जरूर किया था, लेकिन चूँकि मैं उनके साथ था, मेरा इस सवाल से सामना अक्सर हो जाता था और हर बार मेरा जवाब सुनने के बाद वे कहते , 'ओह ! तुम इस पर काम करो | ’
यह प्रक्रिया अगले छह महीने तक लगातार चली | अब मेरे पास विचारों की भी कमी पड़ने लगी थी |
एक बार केरल के रास्ते में डॉ. कलाम ने फिर अपना सवाल फिर पूछा |
मैंने फैसला किया की मैं गेंद उन्ही के पाले में डाल दूंगा |
'मैं आपके इस सवाल का कितनी बार जवाब दे चूका हूँ | इस बार आप मुझे इस सवाल का जवाब क्यों नहीं देते?'
मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा ‘क्या आप एक मिसाइल मैन, परमाणु मैन, रॉकेट इंजीनियर, भारत रत्न, पीपल्स प्रेजिडेंट या एक लेखक के तौर पर याद रखा जाना पसंद करेंगे?’
'तुम्हारे दिए सारे विकल्प गलत हैं, मैं इन सारी चीजों के लिए याद नहीं रखा जाना चाहूँगा |
मैं एक शिक्षक के तौर पर ही याद रखा जाना चाहूँगा.”
उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि मैंने वाकई में उनके बारे में सर्वाधिक स्वाभाविक तथ्य को लेकर चूक कर दी | 2008 में, डॉ कलाम सबसे पहले मुझसे मेरे शिक्षक के रूप में ही मिले थे और मेरे जीवन में अहम भूमिका निभाई थी|
एक सवाल बच गया था |
'मुझे असल में कैसे पता चलेगा कि मैं किस चीज के लिए याद रखा जाना चाहता हूँ?' |
वे बोले, 'इस बारे में कुछ भी कहना कठिन है ; क्योंकि सच्चा जवाब विकसित होता रहता है |
एक डायरी लो | उसे कोई नाम दो | इसमें हर वह चीज लिखने कि आदत बनाओ, जिसके बारे में तुम सीखना चाहते हो, अपने लक्ष्य, अपनी परेशानियाँ | उस समय का उल्लेख ज़रूर करना, जब तुम विफल हुए थे | उन लोगो के बारे में भी लिखना मत भूलना जिन्होंने तुम्हें गिरने पर उठाया था |”'
उस बातचीत के बाद मैंने सबसे पहला काम यही किया कि एक बड़ी नोटबुक खरीदी | उस डायरी को मैंने ‘'कलाम डायरी' बुलाना शुरू किया |
सृजन पाल सिंह - सी ई ओ कलाम सेंटर (लेखक और भारत के 11 वें राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के पूर्व सलाहकार)
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